इन्वेस्टर्स समिट में झलका मध्यप्रदेश का भविष्य, लेकिन क्या प्रदेश का युवा तैयार है?
राम पंवार
मध्यप्रदेश में इन्वेस्टर्स समिट हर बार नए निवेश और संभावनाओं की बात करती है। अरबों रुपये की घोषणाएं होती हैं, मुख्यमंत्री और उद्योगपति मंच साझा करते हैं, तस्वीरें खिंचती हैं, तालियां बजती हैं, और फिर? फिर वही सवाल—क्या यह निवेश वास्तव में प्रदेश के युवाओं के लिए अवसर बनाएगा, या फिर यह पैसा किसी और की जेब में चला जाएगा?
इन्वेस्टर्स समिट का मतलब केवल निवेश लाना नहीं होता, बल्कि यह देखना भी जरूरी है कि क्या हमारा युवा उस निवेश का लाभ उठाने के लिए तैयार है? अफसोस की बात यह है कि मध्यप्रदेश का युवा आज भी औद्योगिक और तकनीकी कौशल के मामले में पिछड़ा हुआ महसूस करता है। और यही सबसे बड़ी चुनौती है।
तकनीक की दौड़ में पिछड़ता युवा
आज की दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन, क्लाउड कंप्यूटिंग, ऑटोमेशन जैसी तकनीकें उद्योगों की रीढ़ बन चुकी हैं। बड़े-बड़े निवेश इन्हीं क्षेत्रों में हो रहे हैं। लेकिन मध्यप्रदेश में शिक्षा और उद्योगों के बीच का तालमेल इतना कमजोर है कि यहां का युवा इस बदलाव के लिए तैयार ही नहीं हो पा रहा।
- प्रदेश के कई कॉलेज आज भी वही पुराना सिलेबस पढ़ा रहे हैं, जो उद्योगों की जरूरतों से मेल नहीं खाता।
- स्किल डेवलपमेंट सेंटर कागजों पर तो हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में उनका प्रभाव सीमित है।
- रोजगार मेले तो लगते हैं, लेकिन नौकरियां फिर भी बाहरी राज्यों के युवाओं को मिलती हैं।
एमपी के युवा सिर्फ मजदूर ही न बन जाएं?
यह एक कड़वी सच्चाई है कि अगर तकनीकी कौशल न बढ़ाया गया, तो मध्यप्रदेश के युवाओं के लिए फैक्ट्रियों में मजदूरी करने, ईंट-गारे ढोने, या फिर डिलीवरी बॉय बनने के अलावा कोई बड़ा अवसर नहीं बचेगा। बड़े उद्योगों को स्किल्ड लेबर चाहिए, और अगर वह मध्यप्रदेश में नहीं मिलती, तो वे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे शहरों से कर्मचारियों को बुला लेते हैं। निवेश तो आता है, लेकिन नौकरियां बाहर चली जाती हैं। यही कारण है कि इन्वेस्टर्स समिट के बाद भी प्रदेश में बेरोजगारी का ग्राफ कम नहीं होता।
समाधान कैसे होगा है?
मध्यप्रदेश को अगर वाकई में निवेश का फायदा उठाना है, तो सिर्फ “मेक इन इंडिया” या “मध्यप्रदेश – उद्योगों का हब” जैसे नारे लगाने से कुछ नहीं होगा। कुछ ठोस कदम उठाने होंगे:
- तकनीकी शिक्षा को अपग्रेड किया जाए: कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में इंडस्ट्री-फ्रेंडली कोर्स शामिल किए जाएं।
- स्किल डेवलपमेंट पर असली काम हो: सिर्फ सर्टिफिकेट बांटने से कुछ नहीं होगा, असल ट्रेनिंग देनी होगी।
- स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा मिले: युवा सिर्फ नौकरी ढूंढें नहीं, बल्कि खुद उद्योगपति बनें, इसके लिए माहौल तैयार करना होगा।
- इंडस्ट्री-एकेडेमिया पार्टनरशिप: कंपनियां सीधे विश्वविद्यालयों से जुड़े, ताकि छात्रों को इंडस्ट्री के हिसाब से तैयार किया जा सके।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा साइंस, ऑटोमेशन पर खास जोर: नई तकनीकों में मध्यप्रदेश के युवाओं को ट्रेनिंग दी जाए।
निवेश तभी सफल जब युवा हो तैयार !
मध्यप्रदेश इन्वेस्टर्स समिट में भले ही हजारों करोड़ रुपये के निवेश की घोषणाएं हों, लेकिन अगर प्रदेश के युवा तकनीकी रूप से तैयार नहीं होंगे, तो यह निवेश किसी और के काम आएगा।
अगर सरकार, शिक्षा संस्थान और उद्योग जगत इस दिशा में गंभीर नहीं हुए, तो प्रदेश के युवा सिर्फ तालियां बजाने और सेल्फी लेने तक ही सीमित रह जाएंगे।
अब सवाल ये है कि क्या मध्यप्रदेश की सरकार और शिक्षा व्यवस्था इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार है? या फिर एक और इन्वेस्टर्स समिट, एक और फोटो सेशन, और फिर वही बेरोजगारी का दौर जारी रहेगा?