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विश्लेषण: क्या है ‘हनुमान चालीसा’ की कहानी; किसने और कैसे लिखा, अकबर की कैद में लिखी गयी चालीसा 

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श्री हनुमान चालीसा में 40 चौपाइयां हैं। जो हनुमानजी की स्तुति में गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचित की हैं। गोस्वामी तुलसीदास 16वीं शताब्दी में अवधी बोली के महान कवि थे। उन्होंने हनुमान चालीसा को अवधी बोली में ही लिखा है..!

इस समय पूरे देश में हनुमान चालीसा की चर्चा हो रही है। महाराष्ट्र में पिछले कुछ दिनों से हनुमान चालीसा राजनीति के केंद्र में है. अमरावती की सांसद नवनीत राणा और विधायक रवि राणा ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के ‘मातोश्री’ आवास के सामने हनुमान चालीसा का पाठ किया, जिसने मुंबई में राजनीति को गर्म कर दिया। ऐसे में अब राणा की जोड़ी चर्चा में है. हालांकि, महाराष्ट्र में अचानक सामने आई हनुमान चालीसा दुनिया में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली धार्मिक किताबों में से एक है। इस चालीसा की कहानी और इतिहास भी बेहद दिलचस्प है। मूल अवधी भाषा में लिखी गई है हनुमान चालीसा। बाद में इसका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया।

हर दिन लाखों लोग पढ़ते हैं|

हनुमान चालीसा एक पुस्तक है जिसका उपयोग भगवान हनुमान से प्रार्थना करने के लिए किया जाता है। चालीसा का अर्थ है 40 रचनाएँ। इस रचना में 40 चौपाइयां हैं। ऐसा माना जाता है कि दुनिया भर में लाखों हिंदू हर दिन हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। यह भगवान हनुमान की क्षमताओं, भगवान राम के प्रति उनकी भक्ति और हनुमान की शक्ति का भी वर्णन करता है। भक्तों का मानना ​​है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से जीवन की सभी समस्याएं और परेशानियां दूर हो जाती हैं।

हनुमान खुद को भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त कहते थे। इसे समय-समय पर हनुमान जी ने भी सिद्ध किया है। कई पुराण ग्रंथों में और शैव परंपरा के अनुसार हनुमान को स्वयं भगवान शिव का अवतार माना जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि मुगल सम्राट अकबर द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद तुलसीदास को हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा मिली। अकबर ने तुलसीदास को दरबार में बुलाया। उस समय तुलसीदास की मुलाकात अब्दुल रहीम खान-खाना और टोडरमल से हुई। तीनों में लंबी चर्चा हुई। वह अकबर पर कुछ भजन लिखवाना चाहते थे| तुलसीदास ने मना कर दिया। उसके बाद, तुलसीदास को अकबर ने गिरफ्तार करवा लिया।

अकबर ने भगवान राम से मिलने की इच्छा व्यक्त की

पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसीदास को चमत्कारिक ढंग से कैद से मुक्त किया गया था। फतेहपुर सीकरी के लोगों के अनुसार, जहां तुलसीदास को कैद किया माना जाता है, और वाराणसी के पंडितों के अनुसार, अकबर ने एक बार तुलसीदास को दरबार में बुलाया था। अकबर ने तुलसीदास से भगवान राम से मिलाने की इच्छा व्यक्त की। तब तुलसीदास ने कहा कि भगवान श्रीराम अपने भक्तों को ही दर्शन देते हैं। यह सुनकर अकबर ने एक बार फिर तुलसीदास को कैद कर लिया।

बड़ी संख्या में बंदर आए।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसीदास ने कैद में रहते हुए अवधी भाषा में हनुमान चालीसा लिखी थी। इसी अवधि के दौरान बड़ी संख्या में बंदर फतेहपुर सीकरी जेल के आसपास आए, जहां तुलसीदास को कैद किया गया था। इन बंदरों ने जगह को काफी नुकसान पहुंचाया। फिर मंत्रियों की सलाह पर बादशाह अकबर ने तुलसीदास को जेल से रिहा कर दिया।

तुलसीदास के नाम का उल्लेख हनुमान चालीसा की 39वीं रचना में भी मिलता है। हालांकि, कुछ हिंदी विशेषज्ञों के अनुसार, रचना तुलसीदास की है, लेकिन ये तुलसीदास अलग हैं।

एक किंवदंती यह भी है कि भगवान हनुमान ने यह पहले सुना था:

जब तुलसीदास ने पहली बार हनुमान चालीसा का पाठ किया, तो कहा जाता है कि स्वयं भगवान हनुमान ने इसे सुना था। ऐसे कई भक्त हैं जो मानते हैं कि हनुमान चालीसा को सबसे पहले हनुमान जी ने सुना था। प्रसिद्ध कथा के अनुसार जब तुलसीदास ने रामचरितमानस का पाठ समाप्त किया तो उनके सामने बैठे सभी श्रोता चले गए। लेकिन उनके सामने एक बूढ़ा बैठा था। एक प्रसिद्ध किंवदंती है कि वह स्वयं भगवान हनुमान थे।

हनुमान चालीसा के बारे में रोचक बातें:

– हनुमान चालीसा की पहली 10 रचनाएं उनकी शक्ति और ज्ञान के बारे में बताती हैं। 11वीं से 20वीं रचना में भगवान राम की गाथा बताई गई है। अंतिम रचना में प्रार्थना है कि भगवान हनुमान की कृपा हम पर बनी रहे।

– इसका अंग्रेजी के अलावा कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

मान्यता है कि, ‘गोस्वामी तुलसीदास जी को हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा मुगल सम्राट अकबर की कैद से मिली था।’ हुआ यूं कि एक बार जब मुगल सम्राट अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास जी को शाही दरबार में बुलाया।

तब गोस्वामी तुलसीदास जी की मुलाकात अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ाना और टोडर मल से हुई। उन्होंने काफी देर तक उनसे बातचीत की। वह सम्राट अकबर की प्रशंसा में कुछ ग्रंथ लिखवाना चाहते थे। लेकिन गोस्वामी जी ने मना कर दिया। तब अकबर ने उन्हें कैद कर लिया।

कहते हैं फतेहपुर सीकरी में तुलसीदास जी करीब 40 दिनों तक कैद रहे। जहां वह कैद थे, वह क्षेत्र बंदरों से घिरा हुआ था। बंदरों ने महल परिसर में प्रवेश किया और वहां मौजूद अकबर के सैनिकों को चोट पहुंचाने लगे। जब यह बात अकबर को पता चली तो उसने तुलसीदास को रिहा करने का आदेश दिया।

इस पूरे घटनाक्रम के होने के बाद तुलसीदास जी काफी प्रेरित हुए और इस तरह उन्होंने हनुमान चालीसा रचित की।

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